मुरार(ग्वालियर) में ठंडी सडक पर जच्चाखाने के सामने तिवारी साहब का कोठी है जो कभी जे.सी.मिल के चीफ इंजीनियर थे उनके पौत्र के हृदय में छेद था जिसे हम एंट्रल सेण्ट्रल डिफेक्ट(Antrl Central Defect) कहते है उसकी उम्र थी 3 बर्ष ये बच्चा जन्म से ही इस रोग से पीडित था - जरा सा हैंसने, रोने, खाँसी खादि से उसे दौरा पड जाता था और शरीर नीला पड जाता, सांस रुकने लगती और एक दम बेहोशी जैसी हालत हो जाती-
जाँच से पता चला कि उसे एंट्रल सेण्ट्रल डिफेक्ट(Antrl Central Defect) है सन 1976 में ग्वालियर में 'डॉक्टर पोपली' ही ऐसे चाइल्ड स्पेशिलिस्ट डॉक्टर थे जो उस बच्चे को सम्भाल पाते थे यद्यपि मरीज और डॉक्टर दोनों के पास कार, टेलीफोन आदि समस्त सुविधाऐं थीं किन्तु यदि समय पर चिकित्सा न मिल पाती तो बच्चे की हालत गम्भीर हो जाती थी उनकी कोठी की बगल में ही 'श्री रामेश्वर दयाल शर्मा' जी की कोठी थी उन्हें सब लोग बडे प्रेम और अन्दर से चाचा कहते थे -उन्होंने उनको मुझसे इलाज कराने का परामर्श दिया और माँ के साथ बच्चे को लेकर क्लीनिक पर आ गए-
जाँच से पता चला कि उसे एंट्रल सेण्ट्रल डिफेक्ट(Antrl Central Defect) है सन 1976 में ग्वालियर में 'डॉक्टर पोपली' ही ऐसे चाइल्ड स्पेशिलिस्ट डॉक्टर थे जो उस बच्चे को सम्भाल पाते थे यद्यपि मरीज और डॉक्टर दोनों के पास कार, टेलीफोन आदि समस्त सुविधाऐं थीं किन्तु यदि समय पर चिकित्सा न मिल पाती तो बच्चे की हालत गम्भीर हो जाती थी उनकी कोठी की बगल में ही 'श्री रामेश्वर दयाल शर्मा' जी की कोठी थी उन्हें सब लोग बडे प्रेम और अन्दर से चाचा कहते थे -उन्होंने उनको मुझसे इलाज कराने का परामर्श दिया और माँ के साथ बच्चे को लेकर क्लीनिक पर आ गए-
लेकिन हमारा क्लीनिक देख कर उनको बहुत निराशा हुई क्युकि क्लीनिक हमने अपनी इच्छा से नहीं बल्कि जनता के आग्रह के कारण डाल दिया था -जो फर्नीचर घर में था सो वहाँ लाकर रख दिया - यहाँ तक कि परदे में भी एक छेद था उनके मन में शंका हुई कि मेरे बच्चे के इतने गम्भीर रोग का इलाज ये कैसे कर सकेंगे - शर्मा जी ने उनके मन की दुविधा जान ली और कहा कि आप न तो फर्नीचर देखिये और न परदा -आप तो अपने बच्चे को देखिये- हमने बच्चे का परीक्षण किया - ह्रदय के रक्त के प्रवाह के साथ रिगर्गीटेशन की सुरसुराहट की ध्वनि स्पष्ट सुनाई दे रही थी - बच्चे का शारीरिक विकास नहीं हो रहा था और उसे बार बार खाँसी जुकाम हो जाता था और बुखार आ जाता था-
पहिली दवा जो दिमाग में आई वह थी 'सोरीनम' हमने इसकी 1000 पोटेन्सी की दो पुडियां 'केलकेरिया फ़ांस 30' व 'चायना30' की दो-दो खुराकें रोज लेने के लिये कह कर एक सप्ताह की दवा दे दी - उस समय एक दिन की दवा का एक रुपया व एक सप्ताह की दवा की फीस केवल पाँच रुपये होती थी सो हमने ले ली - इतनी कम फीस देख कर उनकी निराशा और बढ गई किन्तु जब इलाज चला तो बच्चे की हालत में तीव्रता से सुधार होता चला गया तीन महिने में डॉक्टरों ने उसे रोग मुक्त घोषित कर दिया-
आज उसका आयात-निर्यात का बहुत बडा कारोबार है और वह अमेरिका में रहता है-
दो तीन केस इसी प्रकार के एंट्रल सेण्ट्रल डिफेक्ट व वेंट्रल सेण्ट्रल डिफेक्ट के आये जो सभी ठीक हुए- सिर्फ केवल एक केस माता-पिता की लापरवाही से उचित चिकित्सा न करवाने कारण असफ़ल हुआ है-अनेक रहूयूमैटिक हार्ट(Rheumatic Heart Disease) के केस भी हाम्योपैथिक चिकित्सा से ठीक हुए है-
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