अगिनहोत्री जी के एक साढू भाई राजनांदगांव में सिंचाई विभाग में सहायक यंत्री थे और उनकी पली को एक विशेष कष्ट था और यह यह था कि उन्है केवल मनुष्य की आवाज बिलकुल सुनाई नहीं देती थी तथा आलपिन के गिरने से दरवाजे की आहट तक सब सुनाई देता था पर पालने में पडे रोते हुम बच्चे का रोना नहीं सुन सकती थी-
चिकित्सा के लिये उन्है ग्वालियर लाया गया -अग्निहोत्री जी उन्है लेकर मेरे पास आये पर उन्है तो किसी एक विशेषज्ञ डॉक्टर का ही इलाज कराना था इसलिये नाक, कान, गले के विशेषज्ञ डॉ.टी.एस.आनन्द को दिखाया गया - उन्होंने कहा कि इन्हें बुखार आया होगा -इनकी कान की एक नली में पानी भर गया है - आपरेशन करके इसे ठीक कर देंगे फिर वे मेरे पास सलाह के लिये आये - मैंने पूँछा कि क्या इनको बुखार आया था? उन्होंने कहा नहीं -मैंने उनसे कहा कि मेरी जानकारी में ऐसी कोई नली नहीं है जहॉ पानी भरा रह सके - परन्तु वे ओंपरेशन पर ही तुले थे सो मैंने उन्हें केवल एक कान का आंपरेशन कराने की सलाह दी-
आपरेशन के समय एलोपैथिक दवाओं की कुछ ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि उन्हें योनि के द्वारा भारी मात्रा में रक्त-श्राव होने लगा - इधर बोतलें चढती और उधर से निकल जाती और लगभग 30 बोतल खून उनको दिया गया - जैसे तैसे उनके जीवन की रक्षा हो सकी - इस बीच राजनांदगांव में उनके बंगले में चोरी होगई इसलिये फोरन उन्है वापिस भी जाना पडा-
वे एक बार फिर ग्वालियर आये - आपरेशन वाला कान तो बेकार हो ही चुका था दूसरे कान की चिकित्सा के लिये मेरे पास जाये - डॉक्टर कैन्ट की रिपर्टरी में इसके लिये एकमात्र औषधि फॉस्फोरस बताई गई है जिसकी 1000 की मात्रा दो खुराकों ने उस कान की श्रवणशक्ति वहाल कर दी और एक कान से वे अब सभी आवाज सुन सकती थी-
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