डबरा में में एक जगह अखण्ड रामायण में बैठा था तब मुझे प्यास लगी तो सोचा यहाँ किससे पानी मांगूँ तो बगल के मकान में मेरे एक मित्र चटर्जी रहते थे- मैं उन्हीं के घर चला गया और एक गिलास पानी पिलाने के लिये कहा तो उनकी पत्नी पानी लेकर आई - उनको लगभग आठ माह का गर्भ था - उनके पेट का आकार मुझे कुछ अस्वाभाविक सा लगा- सामान्य गोलाई की जगह बीच में काफी उठा हुआ और दोनो बगल में काफी दबा हुआ लगा-
पानी पीकर मैंने चटर्जी से कहा कि तुम कभी मेरे घर आना- मैं तुम्हें दो पुडियाँ दूँगा वे तुम भाभी जी को खिला देना- ऐसा न हो कि प्रसव के समय कोई कठिनाई उत्पन्न हो जाये वैसे तो में कभी किसी से स्वयं दवा आदि लेने के लिये कहता नहीं हूँ पर न जाने क्यों उस दिन किसी अन्त:प्रेरणा से ये शब्द मेरे मुंह से निकल गये और लगभग एक माह बाद उनकी पत्नी को प्रसव हुआ- सरकारी अस्पताल में डाँक्टर मिसेज अहमद द्वारा वह प्रसव कराया गया - बच्चा तो हो गया लेकिन प्लेसेंन्टा(Placenta) नहीं निकला -अत्याधिक रक्तश्राव के कारण रोगिणी की सामान्य दशा बहुत अधिक खराब हो गई फिर एक स्थानीय नर्स को बुलाया गया जो इस काम में विशेष चतुर मानी जातीं थी - उन्होने उसे निकालने की कोशिश की तो नाल यानी स्टेम टूट कर बाहर आ गई और ब्लीडिंग किसी तरह रुक नहीं रहा था तथा आपरेशन की सुबिधा थी नहीं- रोगी का ग्वालियर या झाँसी पहुच पाना भी शंकापूर्ण था -
ऐसे में वहाँ के मेडीकल आफीसर डाक्टर बी.एम.गौड साहब को मेरी याद आई - उन्होंने चटर्जी से कहा कि जल्दी जाकर डॉक्टर सक्सेना जी को लेकर आओ - चटर्जी ने कहा कौन से डॉक्टर सक्सेना - गौड साहब ने कहा कि क्या तुम उन्है नहीं जानते हो वे भी आपकी तरह सबइंजीनियर है यह सुन कर चटर्जी रोने लगा - उसने कहा कि उन्होंने मुझसे एक महिने पहिले कहा था कि मेरे घर से दो पुडियां लेकर इनको दे देना पर मैं नहीं गया तो अब वे मुझे डांटेगें -
डॉक्टर साहब ने कहा कि डरो नहीं -ऐसी दशा में कोई भी डॉक्टर नाराज नहीं होता है तुम नहीं जाओगे तो मैं उन्है लेने जाँऊगा - रात को दो बजे चटर्जी मेरे पास आया - उसकी रोनी सूरत देख कर मैं समझ गया कि कुछ गडबड हो गई हैं - उसने मुझे परेशानी बताई उस समय मै कुछ बैग वैगरह तो ले कर चलता नहीं था इसलिए आठ-दस शीशियां पेन्ट की जेब में डाल कर उसके साथ चल दिया-
अस्पताल पहुच कर डॉक्टरनी जी से बात हुई - उन्होंने सवालो की झडी लगा दी- क्या करोगे? क्या दवा दोगे? क्तिना समय लोगे? आदि -मैंने उनसे कहा कि हम अपनी होम्योपैथिक दवा देगे - समय तो लगभग आधा घन्टा लग सकता हैं - बैसे भी उनके पास कोई चारा तो था नहीँ मुझे इजाजत दे दी - मैंने 'पल्सटीला1000' की दो बूंदे उनको जीभ पर टपका दीं - पॉच मिनट बाद दो बूंद और दीं और लगभग 15 मिनट बाद एक तीव्र पीडा का दौरा आया और Placenta(आँवल) बाहर आगई - उसे देख कर वहाँ मोजूद सभी डाँक्टर,नर्से और घरवाले आश्चर्य चकित हो गये- जो आँवल एक पतली झिल्ली जेसी होती है वह मक्के की रोटी जेसी मोटी और दलदार थी - उसमें खून की मोटी मोटी नसें अलग दिख रही थीं-
आँचल को एक काँच के जार में फांर्मलडिहाइड के घोल में डुबाकर रखा गया डबरा का अस्पताल ग्वालियर के मेडीकल कॉलेज से सम्बद्ध है यूरिया डाक्टर उसे देख देख कर आश्चर्य करते थे-
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