
सन 1972 में मैंने एक जावा मोटर साइक्लि खरीदी थी डबरा(ग्वालियर) के ही मेरे एक मित्र अग्रवाल मुझसे बोले तुमने गाडी खरीदी है मुझे घुमाने के लिये ले चलो इसलिये अगले दिन रविवार को सिनेमा देखने के लिये झाँसी जाने का कार्यक्रम बन गया झाँसी में ही उनके बडे भाई रहते थे जिनका मैंने दमे का इलाज किया था हम लोग उनके बड़े भाई के घर पंहुच गए -बड़े भाई की पत्नी ने कहा आप लोग पिक्चर देख कर आ जाओ मैं चाट बना रही हूँ खाकर ही जाना-
लौट कर बहुत देर हो गई तो कुछ सोची समझा चाल के मुताबिक उन्होंने मुझें वही रोक लिया और फोन से डवरा सूचना दे दी दूसरे दिन सुबह उनकी बैठक में वही के दस-बरह लोग इकत्रित हो गये -मुझ से कहा गया कि कुछ लोग बैठक में आपका हन्तजार कर रहे हैं आप जरा उनसे मिल लें जब मै नीचे पंहुचा तो मुझें नीचे बैठे लोगों देखा तो उन सभी लोगों को बहुत निराशा हुई क्यों कि बरसात के कारण मेरा कुर्ता और पाजामा कीचड से गन्दा हो रहा था और मेरी दाढी भी बढी हुई थी यानी कि किसी भी एंगल से मैं डॉक्टर जैसा तो दिख ही नहीं रहा था -उन लोगों ने आपस में इशारों में तय कर लिया और एक बुजुर्ग सज्जन को यह भार सौपा फि डॉक्टर साहब की जाँच करो फि ये कुछ जानते भी हैं नहीं या फिर बेफालतू ही लोग इनकी यों ही तारीफ करते रहते हैँ-
तब तो एक बुजुर्ग सज्जन ने मुझ से कहा कि डाक्टर साहब मेरी एक समस्या हल करो -मैंने कहा कहिये क्या समस्या है -वे बोले -मेरे बाबा की मृत्यु लकवे से हुईं थी,मेरे पिताजी की मृत्यु भी लकवे से हुई और मैं 65 वर्ष का हो गया हूँ-मैं लकवे से मरना नहीं चाहता -आप मुझे कोई उपाय बताइये किन्तु दवा मैं कोई खाऊँगा नहीं ये मेरा फैसला है- मैंने अपने मन में सोचा कि इन्हों ने तो मुझे संकट में फंसा दिया -बाप-दादे लकवे से मर गये और खुद ये कब्र में पैर लटकाये बैठे हैं ओर ऊपर से धमकी भी यह है कि दवा ये खायेंगे नहीं - तो मेरे पास कौन सा जादू रखा हैं कि जो मै इनका लकवा छु-मन्तर कर दूँगा -एक क्षण मन में विचार किया तो बात दिमाग में आ गई -मैंने उनसे पूँछा कि क्या उनके बाबा के दिमाग में बहुत उलझन रहती थी ख़न्होंने कहा-हाँ रहती तो थी - मैँने पूँछा आपके पिताजी के दिमाग मे भी उलझन रहती थी?
उन्होने कहा- बहुत -फिर मैंने उन्हें टेलीफोन एक्सचेन्ज का उदाहरण देकर समझाया कि यदि टेलीफीन के तार आपस उलझ जाये तो क्या घन्टी सही जगह बजेगी? बजे, न बजे और कहो तो किसी गलत जगह बजे -इसी तरह जब दिमाग की नाडिंयाँ उलझ जाती हैं तो शरीर फे अंग मनचाहे तरीके से काम नहीं करते है उन्होंने भी एक मंजे हुए कलाकार की तरह अपना हाथ सिर से झुलाया और नाली की तरफ झटक दिया -कहने लगे-उलझन-ये पडी है नाली में -बन्दा अब सौ साल जियेगा पर लकवा मुझे नहीं हो सकता है -
मेरा तात्पर्य वो अच्छी तरह समझ चुके थे और हम उनकी परीक्षा में पास हो चुके थे तभी एक सज्जन बोले डॉक्टर साहब नास्ता मेरे घर पे ही होगा तभी दूसरे बोले खाना मेरे घर पर -
शालीनता से मेरा जवाब था मेरा कुर्ता-पजामा गन्दा है आप लोगो के घर तो जाना हो नहीं सकेगा हाँ आप लोग अगर चाहते है तो सब कुछ यही मंगा ले हम सब बैठ कर मिल-कर खा सकते हैं-
और वे काफी दिन जिन्दा रहे बिना दवा खाए -लेकिन उनकी मृत्यु लकवे से नहीं हुई -
विशेष-
दिमागी लकवा एक न्यूरोलॉजिकल यानि तंत्रिका संबंधी विकार है जो दिमाग (Brain) में चोट लगने या बच्चे के मस्तिष्क के विकास के दौरान हुई किसी गड़बड़ की वजह से होता है दिमागी लकवा शरीर की हरकत या जुंबिश, मांसपेशियों के नियंत्रण और समन्वय, चालढाल, रिफ़्लेक्स, अंग-विन्यास या हावभाव और संतुलन पर असर करता है बच्चों की क्रोनिक यानि पुरानी विकलांगता की ये सबसे आम वजहों में एक है मानसिक लकवा अत्यधिक सोच के कारण भी होता है -दिमागी लकवे से पीड़ित व्यक्ति को जीवन भर इसी स्थिति के साथ रहना पड़ता है-
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