पुलिस विभाग के श्री दुबेजी की 65 वर्षीय माताजी के लीवर में एक टूयूमर था जिसका आकार लगभग 40 मि.मी था तथा उनका पेनक्रियाज भी स्लज से पूरी तरह भरा हुआ था -स्वांस रोग के तीव्र आक्रमण के कारण उन्हें एक स्थानीय नर्सिंग होम में भरती कराया गया था- तत्काल तो जीवन रक्षा ही गई किन्तु हालत में सुधार न होने के कारण डाक्टरों ने कहा कि इनके जीवन की कोई आशा नहीं है क्योंकि औषधियां कोई प्रभाव नहीं दिखा रही हैं -अत: इनको दी जानेवाली जीवन रक्षक प्रणालियों और औषधियों को एक-एक करके कम करते जायेंगे-
ऐसी असाध्य अवस्था में उन्हें सलाह दी गई कि जब अंत आ ही गया है तो क्यों न इनको घर ही ले जाकर इनकी सेवा की जाय उनके घर के पास ही रहने वाले उनके एक सहयोगी ने माताजी को मुझे दिखाने का आग्रह किया- घर जाकर मैंने उन्हें देखा तो हालत वास्तव मे क्रीटीकल थी - मैंने उनसे कहा कि जैसे आप इनकी सेवा कर रहे हैं वेसे ही मैं भी दवाइयों के द्धारा इनकी सेवा करूँगा और परिणाम हम सब ईश्वर पर छोड देते है-और वो मान भी गए -
आखिर मैंने माताजी का इलाज शुरू किया - उनका लीवर कार्य नहीं कर रहा था जिसके कारण उन्हें कुछ भी हजम नहीं हो रहा था -पानी भी उल्टी के द्वारा बाहर निकल जाता था - ऐलोपैथिक चिकित्सा द्वारा उनकी सांस की तकलीफ तो काफी ठीक थी परन्तु सबसे बडी समस्या लीवर को सुधारने की थी -
मैने उन्हें 'कालमेघ' 'हायड्रोक्रोटायल ऐशिसाटिका' 'वोर्विया डिफूयूजा' 'लूफाविन्डाल' तथा 'कैरिका पपैया' सभी का मूल अर्क-जो कि नेशनल होम्यो, कोलकाता द्धारा लिन्हरमिन के नाम से उपलब्ध है-10-10 बूंदें दिन में चार बार और 'इपीकाक 6एक्स' व 'आर्सेनिकम एल्बम 6एक्स' चार बार देना शुरू किया- शीघ्र ही उनकी उल्टियां होना बन्द हो गया -हल्का-फुल्का जूस व सूप भी हजम होने लगा इससे उनके शरीर की दुर्बलता में कुछ कमी आई तथा अब निराशा की जगह कुछ आशा का संचार होने लगा था-
लगभग दो सप्ताह की चिकित्सा के बाद उनके लीवर के टूयुमर की तरफ ध्यान देना शुरू किया 'केल्केरिया कार्ब 1000' की दो खुराकों के बाद 'लेपिंस एल्बम 30' और 'फायटोलैक्का 30' की दो -दो खुराके प्रति दिन दी गई- लिव्हरमिन की भी दो खुराकें सुबह-शाम दी जाती रहीं-
लगभग एक माह को उपरोक्त चिकित्सा के बाद 'इपीकाक' व 'आर्स' की जगह उन्हें 'डिजीटेलिस 3एक्स' और 'कार्डूअस मेरियेनिस 3एक्स' के मिश्रण की दो खुराकें और 'लेपिस30' व 'फायटालैक्का30' की दो खुराकें प्रति दिन दी गई और लगभग एक माह में उनका रक्तचाप भी सामान्य हो गया-
टूमूमर भी घटता जा रहा था -हर बार अल्ट्रासाउंड में उसमें कमी आती जा रही थी -लगभग एक वर्ष इसी प्रकार चिकित्सा चलती रही -बीच बीच मेँ मौसम या खान पान सम्बन्धी कोई समस्या हुई तो उसे सामान्य दवाइयाँ दे कर ठीक कर तिया गया -माताजी लगभग दो साल तक हमारे इलाज मेँ रही -उनका टूयूमर पूरी तरह समाप्त हो गया था-
एक बार दुबेजी ने मुझसे पूछा कि यह कैसे पता चलेगा कि माताजी अब बिलकुल ठीक होगई है तो मैंने हैंसी-हँसी में उनसे कहा कि जिस दिन बहू से झगडा करने लगे -समझ लेना माताजी ठीक हो गई -वे बोले आज ही वे बहू से लड कर छोटे भाई के यहाँ चली गई हैं -कुछ दिन बाद वापिस आ गई-कई साल बाद थोडी सी बीमारी में उन्होंने अपना शरीर छोडा-
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