Why not Get Success in Mantra Jap
आज हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की समस्या से ग्रस्त है कोई पत्नी के विछोह से कोई शत्रु की प्रताड़ना से कोई आफिस के चुगल खोरों से कोई अपने व्यापार के असफलता से कोई घर में कलह पूर्ण वातावरण से अर्थात सभी को कुछ न कुछ इस जीवन में व्याधियां है और उनके निवारण के लिए वो दो ही जगह जाता है या तो स्वयं किसी पुस्तक में इसके उपाय खोजता है या फिर किसी तांत्रिक की शरण में जाता है तो आज हम इस पोस्ट में आपको हर सच्चाई से अवगत कराते है कि आपके द्वारा किया गया मन्त्र (Mantra) जप क्यों विफल हो जाता है जबकि मन्त्र पूर्ण रूपेण प्रभावशाली है-
जादातर साधक कुछ थोडा बहुत मन्त्र जप करते है और उम्मीद करते है कि मन्त्र (Mantra) उनका गुलाम हो जाए और जैसा वो सोचते है वो वैसा करें मतलब है कि थोडा बहुत मन्त्र जप करें और फिर कोई चमत्कार हो जाए अगर ऐसा संभव होता तो विद्यार्थी पुस्तक पढ़ कर क्यों सौ नम्बर नहीं लाते है
सबसे पहली बात जो आपको आज स्पष्ट करना चाहता हूँ कि भगवान् शंकर ने कलियुग में मंत्रो के प्रभाव को कीलित किया है इसका मतलब ताला लगा देना होता है क्यूंकि मंत्रो (Mantra) की सबसे जादा दुरूपयोग की संभावना कलयुग में ही थी हर व्यक्ति अनाचार इर्ष्या, द्वेष , लोभ, मोह, क्रोध से ग्रसित है जो बिना सोचे अहित करने पर आतुर है-
सबसे पहली बात जो आपको आज स्पष्ट करना चाहता हूँ कि भगवान् शंकर ने कलियुग में मंत्रो के प्रभाव को कीलित किया है इसका मतलब ताला लगा देना होता है क्यूंकि मंत्रो (Mantra) की सबसे जादा दुरूपयोग की संभावना कलयुग में ही थी हर व्यक्ति अनाचार इर्ष्या, द्वेष , लोभ, मोह, क्रोध से ग्रसित है जो बिना सोचे अहित करने पर आतुर है-
मन्त्र को प्रभावशील बनाने के लिए मंत्रो (Mantra) का उत्कीलन का विधान है जो साधक मंत्रो का उल्कीलन विधि जानता है मन्त्र को पूर्ण चैतन्य कर सकता है और मन चाहा फल प्राप्त कर सकता है या फिर कोई गुरु जो अपने शिष्य को इस के योग्य मानता है तो उसे अपने मुखारविंद से चैतन्य मन्त्र की सात आवृति के द्वारा प्रदान कर देता है अब बात आती है कि योग्य गुरु कहाँ से मिले तो मित्रो संसार ऐसे संतो या सद्गुरु से विहीन नहीं है बस आवश्यकता है कि आपकी नजरें किसे ढूढ़ रही है -चमत्कारिक गुरु को या आध्यत्मिक गुरु को -
दूसरी बात ये भी है कि गुरु भी अपने शिष्य की योग्यता देखता है कि उसके मन में क्या चल रहा है अगर वह सात्विक प्रवृति का है धैर्यवान है दयावान है आज्ञावान है तो फिर प्रसन्न होकर उसे अपनी दीक्षा देकर मन्त्र प्रदान करता है लेकिन आज तो लोग सेवा भाव से विमुख है बस दर्शन करके तुरंत ही चमत्कार पा लेने को आतुर है जो कदापि संभव नहीं है बहुत इंतज़ार और अथक प्रयास के बाद ही सद्गुरु का सानिध्य प्राप्त होता है-
अब बात आती है कि चलो आप मन्त्र भी किसी योग्य गुरु से ले लेगें तो फिर जप का प्रवधान है अब आप किसी माला से जप करेगें तो आपको पता है कि बाजार से प्राप्त माला से मन्त्र (Mantra) का कोई फल नहीं मिलता है क्यूंकि माला प्रक्षालन विधि आपको ज्ञात ही नहीं है आपने बस माला खरीदी और लग गए मन्त्र जप में-
मन्त्र जप विधान क्या है ये भी आपको पता नहीं है तो फिर आपको मन्त्र का पूर्ण फल भला कैसे प्राप्त होगा अब आप ये सोचेगे कि हम क्या बकवास कर रहे है तो फिर ये जान लें यही गुप्त ज्ञान है जो आसानी से नहीं मिलता है वर्ना सभी लोग वशीकरण, मारण, मोहनी, उच्चाटन आदि का प्रयोग करके सभी कुछ कार्य सफल कर लेते-
अब अंतिम बात है कि लोगों में लगन और धैर्य, निष्ठां, शुद्ध आचरण का भी अभाव है यदि सचमुच आपके अंदर ये छमता है तो कोई भी मंत्र हो वो आपके जप करने मात्र से वह अवश्य ही फलीभूत होगा ये कड़ी मेहनत का काम है जिस तरह एक कक्षा में सभी विद्यार्थियों का दिमागी स्तर अलग अलग होता है उसी प्रकार प्रत्येक साधक की एकग्रता और उसका अध्यात्मिक स्तर भी अलग-अलग होता है-
साधक की एकग्रता और उसकी अध्यात्मिक स्तर पर मंत्र सिद्धि आधारित होती है यानी साधक की एकग्रता उत्तम है और उसने पहले भी साधना की हुई है तो वो सचमुच जल्दी सिद्धि प्राप्त करता है लेकिन कुछ साधक जिन्होंने आज तक कोई साधना या मंत्र जप किया ही नहीं और वो सोचे की मंत्र जप किया और चमत्कार हो जाए तो वो उसके लिए अभी दूर की कौड़ी है हाँ लेकिन असंभव बिलकूल नहीं है-
हमारा मानव शरीर ईश्वर का ही अंश है और मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है जो कुछ भी ईश्वर कर सकता है या ईश्वर के पास जो भी शक्तियां है वो सब हमारी ही अमानत है परमात्मा उन्हें हमें देने के लिए तत्पर है बस हम ही उनकी तरफ ध्यान नहीं देते है और इसी कारण मनुष्य योनि में आकर भी दुःख भोगते है-
मंत्र सिद्धि या इष्ट सिद्धि के लिए कुछ आवश्यक विधि विधान व् शर्तें है जिनको यदि अगर आप जान लेंगे तो आप अवश्य ही सफल होंगे-
विशेष सूचना-
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