Ready for Natural Healing
अक्सर देखा गया है कि रोगी जब मर्ज से बेहाल हो जाता है और जब एलोपैथी के लंबे इलाज के बाद कही राहत नही मिलती है तब मजबूरन वो प्राकृतिक चिकित्सा (Natural Healing) अपनाता है जबकि एलोपैथी की लंबी चिकित्सा के बाद साइड इफेक्ट्स के रूप में दूसरे दर्द और मर्ज भी रोगी की परेशानी में और इजाफा ही करती है-
प्राकृतिक चिकित्सा (Natural Healing) में आपको दवाई के साथ पथ्य, अपथ्य तथा कुछ व्यायाम तथा आपकी जीवन शैली में थोड़े से बदलाव करने को कहे जाते है पर अक्सर मैने देखा है कि लोग इन सब सूचनाओं को बड़े ही हल्के में ले लेते है और सिर्फ दवाई पर पूरा आश्रित (Dependent) रहते है-
दूसरा बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि रोगी चिकित्सा को समय भी नही देना चाहते जबकि चिकित्सा लम्बी इसलिए चलती है ताकि आपके रोग की वर्तमान स्थिति को सुधारा जा सके चूँकि पहले की दवाई से शरीर को हुई क्षति की पूर्णतः पूर्ति हो सके तथा भविष्य में यह रोग बार बार ना हो इसका निवारण (Prevention) हो सके-
प्राकृतिक चिकित्सा (Natural Healing) एक स्थायी उपचार है किन्तु रोगी का सहयोग भी इसमे अनिवार्य होता है कई रोगी मजबूरी वश एक प्रयोग के तौर पर प्राकृतिक चिकित्सा अपनाते है किंतु मानसिक तौर पर वह इस चिकित्सा के लिए तैयार नही होते है कही ना कही सिर्फ एेलोपैथी ही सर्वोपरि है ऐसी पूर्वधारणा उनके मन मे होती है-
यहां हम यह नही कहना चाहते है कि कोई पैथी बुरी है या कोई सही है किंतु हरेक पैथी के अपने-अपने तौर तरीके है रोगी को स्वयं विवेक व पूर्ण अभ्यास के बाद अपने लिए खुद चिकित्सा पद्धति चुननी चाहिए ना कि थक हार कर या किसी मजबूरी वश किसी पद्धति को अपनाना चाहिए-
चिकित्सा के दौरान क्या करना चाहिए-
पथ्य अपथ्य का पालन-
जितना हो सके उतना उचित आहार विहार, विचार रक्खें जिसमे पौष्टिक ओर सुपाच्य आहार, गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन का त्याग, मांसाहार, शराब, धूम्रपान का त्याग, उचित व्यायाम, प्राणायम या योगासन तथा सकरात्मक विचार आदि आवश्यक है-
स्वयम का निरीक्षण-
इसमे स्वयं के शरीर मे चिकित्सा के दौरान क्या-क्या बदलाव हो रहे है मानसिक लक्षणों में क्या बदलाव हो रहे है यह सब को नोट करना चाहिए और भागदौड़ भरी जीवन शैली से थोड़ा समय स्वयं को भी देना आवश्यक है सुबह और रात्रि को थोड़ा सा ध्यान या और कोई रिलेक्सेशन तकनीक अपनायें जिसमे मानसिक-दर्शन, मंत्र जाप, क्लिपिंग, लाफिंग थेरापी, ॐ उच्चारण, मसाज या हीलिंग साउंड म्यूजिक थेरापी आदि जो भी संभव हो अपनायें-
ऊर्जा व्यय को रोकना-
चिकित्सा के दौरान मौन रहा जाए तथा नकारात्मक विचारों को मन से हटाया जाए और व्यर्थ की बाते तथा नकारात्मक सोच और वाचन से बचा जाए-
प्रार्थना-
अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए तथा दूसरों के लिए प्रार्थना करने से मन करुणा, प्रेम, शांति तथा समर्पण से भर जाता है मन की कटुता व आत्मग्लानि दूर होती है तथा मन मे ताजगी आती है व प्रकृति और परमात्मा के प्रति हमारी श्रद्धा दृढ़ होती है जो हमारे तन और मन को स्वास्थ्य प्रदान करती है-
यह सब चीजें जो ऊपर बताई गई है वो आज से 50 साल पहले जाने अनजाने ही हमारी दैनिक जीवन शैली का एक हिस्सा ही थी पर आधुनिकता के चक्कर में अब हमसे हमारी सहज और सात्विक जीवन शैली छीन गई है और इसी का परिणाम है कि अस्पताल आज भरे पड़े है बीमारों से-
अगर यह बात आपको समझ में आ जाए और आप अपनी जीवन शैली में जितना हो सके उतना बदलाव ला पाए तो आप निश्चित ही रोगों का स्थायी उपचार कर सकते है और कई रोगों से बचाव भी कर सकते है तथा एक स्वस्थ समाज व स्वस्थ राष्ट्र बनकर ऊर्जा तथा धन भी बचा सकते है-
विशेष सूचना-
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किसी भी लेख को पढ़ने के बाद अपने निकटवर्ती डॉक्टर या वैद्य के परमर्श के अनुसार ही प्रयोग करें- धन्यवाद।
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