अक्सर आयुर्वेदिक औषधीय चूर्णों का नाम आते ही लोगों को कड़वे कसैले स्वाद के चूर्ण याद आ जाते हैं और बच्चे तो ठीक लेकिन बड़े भी इन्हें खाने से कतराते हैं लेकिन आयुर्वेद में कई स्वादिष्ट चूर्ण व औषधिया भी मौजूद है जो बनाने में आसान तथा मुख्यतः पेट संबंधित रोगों पर बेहद लाभदायक है हमारे रसोई घर में आसानी से मिल जाने वाली चीजों से बने होने की वजह से बनाने में सुगम व सरल है तथा संपूर्ण निरापद भी है-
स्वादिष्ट चूर्णों की इसी श्रेणी में सर्वप्रथम नाम आता है दाडिमाष्टक चूर्ण (Dadimashtaka Churna) का जिसे बड़े लोग तो पसंद करते ही हैं लेकिन छोटे बच्चे भी चटकारे लेकर खाते हैं इस पोस्ट में हम आपको दाडिमाष्टक चूर्ण घर पर बनाने की विधि तथा इस चूर्ण के लाभ व उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे-
अकसर पाचक रसों की गड़बड़ी व भोजन की अनियमिता से आमाशय कमजोर हो जाता है खाया हुआ भोजन पचा नहीं पाता तथा यह भोजन पेट में ज्यों का त्यों पड़ा रहता है जिससे पेट में गैस की उत्पत्ति होती है परिणामस्वरूप अम्ल पित्त, कंठ में जलन, खट्टी डकारें, पेट का भारीपन, आफरा, तथा कब्ज जैसी समस्याएं होने लगती हैं यह अवस्था बढ़ने पर अरुचि तथा भूख न लगने व वमन जैसी समस्या भी होने लगती है-
ऐसी स्थिति में शरीर को भोजन द्वारा मिलने वाला पोषण भी नहीं मिल पाता जिससे शरीर कमजोर पड़ जाता है तथा रोगप्रतिकारक शक्ति भी कमजोर होने लगती है वह अन्य कई प्रकार की दूसरी समस्याएं भी होने लगती है ऐसी अवस्था में दाडिमाष्टक चूर्ण (Dadimashtaka Churna) एक स्वादिष्ट उपचार है इसका नियमित सेवन करने से पेट के रोगों से मुक्ति मिलती है तथा अजीर्ण, अरुचि तथा भूख ना लगने जैसी समस्याएं भी नष्ट होती है-
दाडिमाष्टक चूर्ण बनाने की विधि-
सामग्री-
सुखा हुआ अनारदाना- 40 ग्राम
शक्कर- 160 ग्राम
काली मिर्च- 20 ग्राम
पीपल- 20 ग्राम
दालचीनी - 20 ग्राम
तमालपत्र - 20 ग्राम
छोटी इलायची- 20 ग्राम
सोंठ- 20 ग्राम
विधी-
सूखे हुए अनारदाना तथा अन्य औषधियों के पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और मिला ले अब उसमें शक्कर को पीसकर मिला ले अच्छी तरह से मिलाकर इसे साफ़ डिब्बों में भर ले दाडिमाष्टक चूर्ण (Dadimashtaka Churna) तैयार है-
मात्रा व अनुपान-
उम्र तथा समस्या के अनुरूप 1 ग्राम से 3 ग्राम तक सुबह शाम छाछ या गर्म जल के साथ लें-
लाभ-
दाडिमाष्टक चूर्ण (Dadimashtaka Churna) के सेवन से आमातिसार (Bische), अरुचि (Anorexia), अग्निमांद्य, खांसी, ह्रदय की पीड़ा, पसली का दर्द, ग्रहणी और गुल्म रोग नाश होता है पित्त के रोगों में यह विशेष रूप से लाभदायक है यह सौम्य, शीतल, रुचि वर्धक, पित्तशामक तथा कंठ शोधक है-
दाडिमाष्टक चूर्ण के उपयोग-
1- मंदाग्नि या भूख ना लगने जैसी समस्या में भोजन करते समय एक चम्मच दाडिमाष्टक चूर्ण दो चम्मच चावल तथा आधा चम्मच घी में अच्छे से मिलाकर खाने से रूचि वर्धन होता है तथा खुलकर भूख लगती है व खाए हुए अन्न का योग्य तरीके से पचन होता है-
2- दाडिमाष्टक चूर्ण बेहद स्वादिष्ट व चटपटा होने की वजह से बच्चे भी इसे बड़े शौक से खाते हैं बच्चों को दाडिमाष्टक चूर्ण की गोलियां बनाकर रोज सुबह शाम 1-2 गोली देने से बच्चों की पाचन क्षमता बढ़ती है, भूख खुलकर लगती हैं तथा पेट दर्द व अन्य पेट संबंधित समस्याएं नहीं होती-
3- खांसी (Cough) में इस चूर्ण को शहद में मिलाकर खाने से या शहद में मिलाकर गोलियां बनाकर चूसने से खांसी में राहत मिलती है-
4- बच्चों को अक्सर टॉन्सिल्स की बीमारी (Tonsillitis) होते हुए देखी जाती है ऐसी समस्या में इस चूर्ण को थोड़ी सी हल्दी व शहद के साथ मिलाकर चाटने से टॉन्सिल का दर्द, गले का दर्द, स्वर भेद जैसी समस्याएं दूर होती है-
5- उल्टी होने या मितली (Vomit) आने जैसी समस्या में यह चूर्ण चाटने से लाभ होता है-
6- दाडिमाष्टक चूर्ण को मुखवास की तरह भी उपयोग कर सकते हैं भोजन के बाद एक एक चम्मच चूर्ण लेने से खाए हुए भोजन का अच्छे से पाचन होता है तथा गेस, आफरा, पेट फूलना (Boating) बदहजमी (Indigestion) जैसी समस्याएं नहीं होती-
7- अतिसार (Diarrhoea) में 1 से 2 ग्राम चूर्ण दही या छाछ के साथ लेने से अतिसार तथा पेचिश में लाभ होता है-
विशेष सूचना-
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